लोगों की राय

विविध >> आसमान से ऊँचा

आसमान से ऊँचा

विजयपत सिंहानिया

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3319
आईएसबीएन :81-7315-587-9

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

266 पाठक हैं

यह पुस्तक सिखाती है-खतरों से जूझना और जीवन के रोमांच को जीना

Aasman Se Unchha a hindi book by Vijaypat Singhaniya - आसमान से ऊँचा - विजयपत सिंहानिया

प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश

हम बचपन में आसमान से उड़ते पक्षियों को देख स्वयं उड़ान भरकर आसमान छूने का स्वप्न देखते है; पर बहुत कम लोग ऐसे होते हैं। जो अपने स्वप्न को साकार कर पाते है। ऐसा ही विरला नाम है- डॉ. विजय पत सिंहानिया, जिन्होंने बाईस दिनों में-16 अगस्त, 1988 से 8 सितंबर, 1988 तक-इंग्लैंड से भारत तक लगभग 5000 मील की हवाई उड़ान पूरी की और इस प्रकार उन्होंने अंग्रेज पायलट ब्रायन मिल्टन के चौंतीस दिनों का रिकॉर्ड तोड़कर ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड्स’ में अपना नाम दर्ज करा लिया।

इस यात्रा की शुरुआत एक पत्रिका में छपे एक छोटे से विमान के चित्र से हुई, जो देखने मे विल्कुल अजीबोगरीब लग रहा था। उसे देखकर डॉ. विजयपत सिंहानिया के मन में विचार आया और उन्होंने उस छोटे से विमान में एक साहसिक उड़ान भरने का निश्चिय कर लिया। हालाँकि यह कार्य अत्यंत जोखिमपूर्ण लग रहा था, लेकिन इसका अंत अत्यंत गौरवपूर्ण रहा। अपने आदर्श नायक जे.आर.डी. टाटा की तरह ही विजयपत सिंहानिया भी उड़ान को लेकर ऊँचे-ऊँचे सपने देखा करते थे। सचमुच उड़ान को लेकर उनके मन में एक अलग तरह की ललक और जज्बा है। जो विमान उन्होंने पत्रिका में चित्र के रुप में देखा था, वह दो सीटोंवाला और टू-स्ट्रोक इंजनवाला एक शैडो माइक्रोलाइट था, जो एक मोटोबाइक की शक्ल का दिखाई दे रहा था। विमान इतना छोटा था कि स्वयं उनके शब्दों में-‘उसमें बैठने पर बैठने का अहसास कम और उसे पहनने का अहसास ज्यादा होता था।’
यह पुस्तक सिखाती है-खतरों से जूझना और जीवन के रोमांच को जीना।



हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जो घटनाएँ आज घट रही हैं, अतीत में वे भविष्य की लगती थीं।
सर माइकल हॉवर्ड
प्रसिद्ध इतिहासकार

जब शरीर की थकान चरम पर होती है तो दर्द की अनुभूति नहीं होती है। मस्तिष्क थका हो तो अन्य वेदनाएँ भी समाप्त हो जाती हैं। पर इस शरीर और मस्तिष्क से परे कोई अदृश्य शक्ति, यात्रा को निरंतर जारी रखने के लिए विवश कर देती है। इस अदृश्य एवं महान शक्ति, जिसे श्रीमद्भगवद्गीता में ‘आत्मा’ कहा गया है, को मैं मानव की जीवन-चेतना कहता हूँ।
यह अदृश्य शक्ति हम सभी में निवास करती है आवश्यकता ऊर्जस्विता प्रदान कर अपने अंदर सुप्त अदृश्य शक्ति और संभाव्यता को जाग्रत करने तथा उससे बड़े उद्देश्य प्राप्त करने की है।
[-दिल्ली में उड़ान पूरी करने के बाद अपने सम्मान में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए डॉक्टर विजयपत सिंहानिया]

आमुख

एयर इंडिया के एक पूर्व वरिष्ठ पायलट ने मुझे विजयपत सिंहानिया और एयर इंडिया के संस्थापक, भारतीय उड्डयन के जनक जे.आर.जी. टाटा से तुलना करने से मना किया। वैसे दोनों में ऐसी कई बातें समान हैं, जिनके आधार पर उनकी तुलना की जा सकती है। दोनों ही ऐसे परिवारों से रहे हैं, जिनका प्रारंभिक व्यवसाय वस्त्र उद्योग रहा। ब्रिटिश शासनकाल में दोनों-विजयपत सिंहानिया और जे.आर.डी. टाटा- के चाचा को ‘नाइट’ की उपाधि दी गई थी; दोनों को बचपन से ही उड्डयन के क्षेत्र में विशेष रुचि रही; दोनों ने ही पहले एक छोटी एयरलाइंस शुरू की और फिर दोनों ही भारतीय वायुसेना में अवैतनिक एयर कमोडोर बने। ये दोनों ही यह सम्मान प्राप्त करनेवाले पहले असैनिक व्यक्ति हैं।
दोनों विभूतियाँ अलग-अलग कालक्रम में उदित हुईं। जे.आर.डी. टाटा का पदार्पण उस समय हुआ जब उड्डयन का विकास अपनी आरंभिक अवस्था में ही था और उसके विकास की पर्याप्त संभावनाएँ थीं। परंतु विजयपत के समय में उड्डयन का नियमन एक भारी बोझ बन गया था और उड्डयन के प्राधिकारी ‘एडवेंचर’ यानी साहसिकता का नाम सुनते ही काँप उठते थे। जे.आर.डी. टाटा ‘टाटा समूह’ (भारत का सबसे बड़ा उद्योग समूह) के चेयरमैन बने, जबकि विजयपत इस तरह का चौथा सबसे बड़ा उद्योग समूह स्थापित करनेवाले व्यक्ति बने। इंग्लैंड से भारत के लिए अपनी शानदार उड़ान भरने के समय वह प्रसिद्ध ‘रेमंड’ कंपनी के चेयरमैन थे।
किन्तु दोनों व्यक्तियों के बीच तुलना का सबसे महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय आधार यह है कि जे.आर.डी. टाटा ने सन 1930 में अपनी सबसे लम्बी उड़ान भारत के लिए भरी, जब उनकी उम्र मात्र छब्बीस वर्ष थी। तीस से चालीस वर्ष की अवस्था में वह कामयाबी की बुलंदियों पर थे। दूसरी ओर, उनचास वर्ष की उम्र में विजयपत एक उद्योगपति के रूप में अपनी कामयाबी की बुलंदियों पर थे। सन् 1988 में उन्होंने जीवन का संवभतः सबसे बड़ा जोखिम उठाते हुए एक छोटे माइक्रोलाइट विमान में इंग्लैंड से भारत के लिए अपनी वह साहसिक यात्रा शुरू की, जिसने आठ माह पूर्व स्थापित मेरे रिकॉर्ड को तोड़ दिया।
भारतीय संस्कृति में अधेड़ावस्था में साहसिक अभियान पर जाने की बात अच्छी नहीं मानी जाती। इसके लिए बीस से तीस वर्ष के बीच की उम्र ही सबसे उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि इस उम्र के बाद व्यक्ति को अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक वहन करने और अपने तथा अपने बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए स्थापित हो जाना चाहिए। इस सोच और इस मान्यता के विपरीत जाने पर समाज की ओर से जोरदार विरोध देखने को मिलता है। मैंने स्वयं देखा था, विजयपत के चारों ओर खड़े लोग किस तरह उन्हें माइक्रोलाइट उड़ान पर जाने से रोकने की कोशिश कर रहे थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि उड़ान के निर्धारित समय से एक दिन पूर्व पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जिया-उल-हक की हत्या कर दी गई थी। विजयपत को यह सूचना भारत में उनके एक घनिष्ठ मित्र के माध्यम से मिली थी, जिसने उन्हें फोन पर बताया था कि अब उनकी उड़ान संभव नहीं है, इसलिए वह अपना कार्यक्रम स्थगित कर दें। किंतु इससे हतोत्साहित होने की बजाय विजयपत ने उत्तेजित होकर कहा, ‘नहीं।’
अगर विजयपत को उड़ान पर न जाने के लिए यह बहाना किया जाता, तो कोई भी ऐसा नहीं था, जो उन्हें संतुष्ट या आश्वस्त कर सकता। उनके दृढ़ निश्चय को कमजोर करनेवाली किसी भी बात का उनके मन पर-और भारत पर भी-बुरा प्रभाव पड़ता। मैं इससे बहुत प्रभावित हुआ।
हमें नायकों, वीरों की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि वीरों के मन में भय नहीं होता। वीर पुरुष वे होते हैं, जो अपने भय को त्यागकर, उसे जीतकर कुछ उल्लेखनीय कार्य करते हैं और जो अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा-स्रोत बन जाते हैं। भय हम सभी के अंदर विद्यमान है। यह एक स्वाभाविक गुण है, जो हमारी उत्तरजीविता के लिए आवश्यक भी है। उत्तरजीविता की ‘लड़ो या भाग लो’ की वृत्ति में भय एक उभयनिष्ठ कारक है। मेरा अपना मानना है कि विपरीत परिस्थितियों के कारण उत्पन्न भय पर जीत हासिल करके आगे बढ़नेवाला व्यक्ति ही वास्तव में वीर है; वही प्रशंसा का पात्र है।
यह शानदार जीत हासिल करने के लिए विजयपत को कई खतरनाक हालातों से गुजरना पड़ा, जिनके बारे में वर्षों बाद आज भी वह बड़े उल्लसित भाव से बताते हैं।
उनकी प्रेरणा-स्रोत उनकी दो वर्षीया पौत्री अनन्या है, जिससे वह अत्यधिक प्रभावित और प्रेरित हुए हैं।
उनकी चौबीस दिनों की उड़ान को लेकर उनके देशवासियों में बड़ा उत्साह देखने को मिला, जो बाद के कुछ महीनों तक भी बना रहा। मैं उनकी इस उड़ान में पूरे समय उनके साथ रहा। इस पुस्तक के संपादन में भी मैंने सहयोग किया है। मुझे आशा है कि एक ऐसे व्यक्ति की इस साहसिक उड़ान के बारे में पढ़कर आपको भरपूर आनंद आएगा, जिसे उस समय ‘भारत का वीर सपूत’ कहा गया था।
ब्रायन मिल्टन
--------------------

विशेष: दस वर्ष बाद, 1998 में मैं माइक्रोलाइट विमान में पूरी दुनिया की उड़ान भरनेवाला पहला व्यक्ति बना और इस प्रकार मैंने विजयपत से इंग्लैंड-भारत उड़ान का कीर्तिमान वापस अपने नाम कर लिया।

प्राक्कथन

अपनी पौत्री अनन्या के प्रति मेरा कुछ खास ही लगाव रहा है। वह मेरे और मेरी पत्नी आशा के बहुत निकट आ गई थी। पहली बार मुझे एक अलग तरह की भावुकता, एक स्पंदन का अहसास हुआ था, जिसे ज्यादातर लोग ‘प्यार का अहसास’ मानते हैं। सचमुच वह मेरी आत्मा का एक हिस्सा बन गयी थी। मैं बराबर उसके साथ रहने, उसके साथ अपना समय बिताने की कोशिश करता था। मेरे शेष जीवन के लिए वह एक तरह से मेरी भावनात्मक कमजोरी बन गई थी।
अंग्रेज पत्रकार ब्रायन मिल्टन के कीर्तिमान को तोड़ने के लिए ‘शैडो’ माइक्रोलाइट पर उड़ान के लिए निकलना मेरे लिए एक मिशन था। यह मिशन भी अन्य मिशनों की तरह जोखिम और कौतूहल से भरा हुआ था। मैंने उड़ान के दौरान अपनी रक्षा के लिए अपने केबिन के अंदर अपने कुलदेवों-द्वारकाधीशजी, तिरुपति के भगवान् बालाजी और राधा-कृष्ण-की तसवीरें रख ली थीं। इन तसवीरों के ऊपर ही अनन्या की तसवीर थी। सबसे ऊपर, जी हाँ-क्योंकि उसके लिए मेरे दिल में यही जगह थी। एक अलग दुनिया में बड़ी होकर अब तो वह बदल ही गई है, पहचानने में भी नहीं आती। मैं उसकी दीर्घायु और उसके खुशहाल जीवन की कामना करता हूँ।
उसी अनन्या को, जो मेरे लिए किसी परी से कम नहीं है और जिसने इसी स्वरुप में मेरे छोटे से विमान में यात्रा की, जिसे सिर्फ मैं देख सकता था, अहसास कर सकता था-अपनी यह पुस्तक मैं उसे समर्पित करना चाहता हूँ। यह पुस्तक निर्जन स्थानों में उन्मुक्त होकर उड़नेवाली किसी उड़नपरी की कथा नहीं है, यह एक छोटे से विमान के चालक-कक्ष में बैठकर उड़ान भरते हुए मेरी अपनी यात्रा की सच्ची कहानी है, जिसमें मेरे साथ एक अदृश्य, किंतु वास्तविक परी थी- विमान के चालक, अपने दादा की रक्षा करने के लिए। मेरी प्यारी, अनन्या, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ-इतना प्यार, जितना कभी भगवान् से भी नहीं किया होगा।
अब अनन्या उन्नीस वर्ष की हो चुकी है, जिसे देखने की मेरी बहुत इच्छा होती है।
इस महत्त्वपूर्ण अवसर पर मैं अपने परिवार के सदस्यों के प्रति एक बार फिर अपना गहरा प्रेम प्रकट करना चाहता हूँ-मधुपति, अनुराधा और उनके बच्चे अनन्या रसालिका, तारिणी और रैवत; शेफाली, अजयकांत रुइया और उनके बेटे रित्विक एवं अद्वैत; गौतम और उनकी पत्नी नवाज (और उनका आनेवाला बच्चा); मेरे अनुज स्व. अजयपत की पत्नी वीणा और उनके दोनों बेटे अक्षय और अनंत तथा पुत्रवधुएँ उज्ज्वला और रोमा, उनके बच्चे शाश्वत, कार्तिकेय पर मेरी प्यारी-प्यारी श्रेयशी और आद्या-सभी के प्रति मैं अपना हार्दिक प्रेम प्रकट करता हूँ।
मैं ईव जैक्सन के प्रति, जिन्होंने मेरी उड़ान की योजना तैयार की; रियाज डॉन के प्रति जिन्होंने पूरी योजना का समन्वय किया और अपने निष्ठावान साथी स्व. माइक एटकिंसन के प्रति आभार प्रकट करना चाहता हूँ। मैं ब्रायन मिल्टन का हृदय से आभारी हूँ, जिन्होंने उड़ान की पूरी कहानी को पुस्तक रूप में सँजोया और लंबे समय से पड़ी पांडुलिपी को पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करने में मेरी मदद की। श्रीमती आशा नाथ ने पुस्तक के अंशों का संपादन किया, इसके लिए मैं उन्हें हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ। मैं अपनी सेक्रेटरी फ्रेड्डी फर्नांडीज का आभार प्रकट करता हूँ, जो मेरी उड़ान के दौरान बंबई (मुंबई) में मेरे कार्यालय में बैठी आनेवाले फैक्सों और टेलेक्सों पर नजर रख रही थीं। मेरी इस साहसिक उड़ान में मेरा सहयोग करनेवाले अन्य सभी महानुभावों के प्रति मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। जतिन बखानी ने अपने कंप्यूटर के माध्यम से पूरी सामग्री का संयोजन किया, जो समाचार-पत्र ‘द इंडियन पोस्ट’ में कहानी के रूप में प्रकाशित हुई, इसके लिए मैं उनके प्रति विशेष आभार प्रकट करना चाहता हूँ। लंबे समय से मेरे मित्र रहे रियाद में भारतीय दूतावास के राजदूत-सहायक, ग्रुप कैप्टन एस.पी. त्यागी (वर्तमान में एयर चीफ मार्शल, चीफ ऑफ एयर स्टाफ) का हृदय से कृतज्ञ हूँ, जिनके खाड़ी में अमेरिकी नौसैनिक बेड़े के साथ लगातार संपर्क बनाए रखने और प्रतिदिन फोन करके मेरी हौसला-अफजाई के बिना यह सब संभव नहीं था।
अंततः मैं अपनी पत्नी आशा को धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिन्होंने मन में एक अज्ञात भय के लिये मूकदर्शक बनकर सबकुछ देखा; लेकिन मेरी सनक, मेरे उत्साह को देखते हुए बोला एक शब्द भी नहीं।
डॉ. विजयपत सिंहानिया
(भारतीय वायुसेना)
विशेष: नवंबर 2005 की पूर्वोल्लिखित उड़ान का कीर्तिमान विजयपत द्वारा स्थापित कर लिया गया है।

1
25 अगस्त, 1998-पहला भाग


मेरे चचेरे बड़े भाई की कर्कश आवाज मेरे कानों में पड़ी और मैं उठकर बैठ गया। यह आवाज ठीक वैसी ही थी, जैसे कुछ सप्ताह पहले भारत में उनके द्वारा मुझे कही गई थी-‘कितना बेहूदा विचार है ! क्या तुम जान-बूझकर मौत के मुँह में जाना चाहते हो ? मैं जानता हूँ कि तुम हमेशा ही बेवकूफी भरा दुस्साहस करते रहे हो, लेकिन यह तो तुम्हारी बेवकूफी की हद ही हो गई !’’
अगस्त महीने का यह एक विशिष्ट दिन था और मैं यूनान के कोरफू द्वीप पर था। मुझे चिंता होने लगी थी कि आखिर मैं कितना नीचे तक जा सकता हूँ।
अगले ही दिन मुझे एक माइक्रोलाइट विमान में अंग्रेज पायलट ब्रायन मिल्टन द्वारा पिछले वर्ष स्थापित किए गए विश्व कीर्तिमान को तोड़ने के लिए उड़ान पर जाना था। उन्हें उड़ान पूरी करके भारत में उतरने में 34 दिन लगे थे और मैं यह उड़ान 23 दिन में पूरी कर भारत में उतर जाना चाहता था। 5 हजार मील की यात्रा ! सुनने में ही लगता होगा, कितना लंबा समय लग जाएगा ! लेकिन इस यात्रा के दौरान ब्रायन को भी कई विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ा था और मुझे भी इसी तरह की कई विषम स्थितियों से गुजरना पड़ रहा था। 59 दिन में अपने अंतिम लक्ष्य सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) पहुँचकर उन्होंने सबसे लंबी, सबसे तेज माइक्रोलाइट उड़ान का कीर्तिमान स्थापित कर दिया, जो अगले दसवर्षों तक बना रहा। मैंनें उड़ान के लिए अपनी पसंद का मार्ग इंग्लैंड से भारत चुना था। उड़ान में रही मुश्किलों से मुझे बहुत निराशा हो रही थी।
मेरी उड़ान का आठवाँ दिन था और उस समय एक और बड़ी मुश्किल मेरे सामने आ गई, जब मैंने अपने मेकैनिक माइक एटकिंसन को खो दिया। मेरी उड़ान के नियोजक ईव जैक्सन का भी कुछ पता नहीं चल रहा था। मेरे सी.एफ.एम. शैडो विमान के लिए अतिरिक्त ईंधन लेकर उन्होंने पिछली रात इंग्लैंड से एयरलाइनर से उड़ान भरी थी, लेकिन कोरफू में प्रातःकाल बड़ी खोजबीन के बाद भी उनका कुछ पता नहीं चल सका।
मौसम भी साथ नहीं दे रहा था। यूनानी प्राचीन ग्रंथ-खासकर होमर का ‘ओडिसी’ (Odyssey) –पढ़कर लगता है कि कवि (होमर) ने 800 ई. पू. जिन वीरों के बारे में लिखा था, उनके साथ जो कुछ भी हुआ, उसमें प्रचंड हवाओं की बड़ी भूमिका रही थी। वे प्रचंड हवाएँ अब भी वहाँ मौजूद हैं और उस दिन कोरफू द्वीप, जिसे यूनानी लोग ‘केरकिरा’ कहते हैं, पर मेरे लंच के समय वे प्रचंड वेग से चल रही थीं। ये प्रचंड हवाएँ सबकुछ अस्त-व्यस्त कर देने की शक्ति रखती थीं। इनकी उपस्थिति में टू-स्ट्रोक इंजनवाले छोटे से 532 सीसी विमान में समुद्र के ऊपर हजारों मील तक उड़ने की कल्पना कर पाना भी भयावह लगता था।
18 अगस्त, 1988 को लंदन के निकट ब्रिटेन फाइटर स्टेशन ‘बिगिन हिल’, जहाँ से मैंने अपनी यात्रा शुरू की थी, छोड़ने से पहले मुझे जिन पाँच‘ अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ा था, उनमें भूमध्य सागर दूसरी अग्नि परीक्षा के रूप में पहली अग्नि परीक्षा-फ्रांस और इटली में आल्पर्स पर्वत-के बारे में मैं उल्लेख कर चुका हूँ। महासागर का पहला क्रॉसिंग बिना किसी बड़ी मुश्किल के गुजर गया था, जबकि उस समय दृश्यता बहुत कम थी। कोरफू तक न पहुँच पाने और अल्बानिया में ही फँसे रह जाने की आशंका से मैं बहुत घबराने लगा था अल्बानिया, जो पहले यूगोस्लाविया का ही एक हिस्सा था, में अलग राज्य की माँग को लेकर लड़ाई चल रही थी। उसके भूभागीय क्षेत्र के ऊपर किसी प्रकार की अनधिकृत उड़ान वर्जित थी। ऐसे में मैं डरा हुआ था कि मुझे जासूस समझकर कहीं बंदी न बना लिया जाए। मेरे साथ जो छोटी सी टीम थी, उसके अंग्रेज सदस्यों को जब मैंने बताया कि समुद्र में गिरने की स्थिति में अपनी सुरक्षा के लिए मैंने अपना साथ शार्क प्रतिरोधक चूर्ण की थैली रख ली है, तो वे सब हँसते हुए एकदम उछल पड़े उस समय मैं यह नहीं समझ पाया कि मेरी इस पूर्व सावधानी की बात में उनके हँसने के लायक ऐसा क्या था !
हम गत चौबीस सालों से अपने उस भय को दूर करने की कोशिश में लगे थे, जो अथाह जलराशि के ऊपर उड़ने में स्वाभाविक रूप से पैदा हो जाता है। जो लोग हवाई उड़ान के बारे में कोई जानकारी नहीं रखते, उनके लिए सिंगल-इग्नीशन इंजनवाले विमान से समुद्र के ऊपर भरने में उतना खतरा नहीं दिखाई देता जितना कि जमीन के ऊपर उड़ने में। वे तो बस यही कह देंगे कि इंजन को क्या पता कि वह समुद्र के ऊपर है, इसलिए उसके रुकने का सवाल ही क्या है ? किंतु टू-स्ट्रोक इंजन दुनिया में सबसे विश्वसनीय इंजन नहीं है। मैंने रोटैक्स 447 सीसी इंजन लेने की बात पहले ही अस्वीकार कर दी थी, जिसका प्रयोग ब्रायन मिल्टन और ईव जैक्सन ने अपने माइक्रोलाइट उड़ान में किया था। इसकी बजाय मैंने अधिक शक्तिशाली रोटैक्स 532 इंजन चुना था, जिसमें 20 अश्वशक्ति (हॉर्सपावर) अतिरिक्त थी। लेकिन ऐसे में मुझ पर जो मानसिक दबाव था, वह इस बात को लेकर था कि इस विमान से मैंने जो पहली उड़ान भरी थी, वह सीधी इंग्लिश चैनल तक थी और इटली के पूर्वी तट पर पहुँचते-पहुँचते एटकिंसन को निकास पाइप की मरम्मत करने के लिए उड़ान को एक दिन रोकना पड़ा था। मुझे इंजन पर विश्वास था। लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उसे लेकर आशंका की कहीं कोई गुंजाइश ही न हो।
विशाल वाटर क्रॉसिंग की उड़ान के दौरान मुझे अपने साथ रखने के लिए एक दूसरे विमान की जरूरत थी। इससे पहलेवाले दिन की 130 मील की यात्रा लगभग निराशा में गुजरी, क्योंकि मैं निर्धारित समय से काफी विलंब से चल रहा था। लेकिन अंततः लंदन में मेरे दफ्तर में बैठे रियाज डॉन ने चार सीटवाले एक एकल-इंजन विमान में दो पायलट मेरे पीछे भेजने की व्यवस्था कर दी, जो लगभग आधे यूरोप से मेरे पीछे उड़ान भर रहे थे। मुझे उम्मीद थी कि वे मुझे उसी दिन मिल जाएँगे।
तभी ईव जैक्सन भी मुझे मिल गई और दुर्भाग्यवश माइक एटकिंसन चल बसे।
उसी दिन प्रातः सात बजे माइक से मेरी पहली बातचीत हुई, जब उन्होंने मेरे होटल में फोन किया।
‘मि. विइइ...जअअय,’ उन्होंने लगभग चीखते हुए कहा था। उसके बाद शांत स्वर में बोले, ‘मैं माइक बोल रहा हूँ।’
‘माइक, किस जहन्नुम में हो तुम ?’’ मैं फोन पर चिल्लाया, ‘मैं तुम्हें कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिर रहा हूँ।’
‘मैं एक नाव में बैठ गया था, लेकिन उसमें सो गया था।’
मैंने मन-ही-मन उसे कोसा-हिंदी में; क्योंकि इसके लिए हिंदी से अच्छा कोई और माध्यम नहीं लगता।
‘ठीक है, ठीक है ! लेकिन माइक, इस समय तुम हो कहाँ ?’
‘मैं किसी द्वीप पर उतर गया हूँ।’
‘कहाँ ?’
‘मुझे मालूम नहीं है।’
‘माइक, भगवान् के लिए पता लगाओ कि तुम किस जगह पर हो ?’
‘हाँ, मुझे लगता है मैं नाव के सहारे लगभग साढ़े दस बजे तक पहुँच सकता हूँ।’
‘कहाँ पहुँच सकते हो, माइक ?’
‘जहाँ पर आप हैं।’
‘और क्या तुम्हें पता है कि मैं कहाँ हूँ ?’
‘मैं कुछ नहीं जानता। प्लीज, मि. विइइ..इजअअय, आप मुझे उस द्वीप का नाम बता दीजिए, जिस पर इस समय आप पहुँचे हैं, ताकि मैं आपको बता सकूँ कि मैं कहाँ पहुँचना चाहता हूँ।’
मेरा हृदय अंदर से भभक उठा, कानों में से मानो भाप-सी निकलने लगी थी। माइक ने किसी तरह नाव का प्रबंध किया और मेरे पास पहुँच गया। उसके चेहरे पर याचना के भाव साफ दिखाई दे रहे थे। उसके सो जाने का कारण मुझे कुछ-कुछ समझ में आ रहा था। उसने फ्रांस और इटली तक कार से मेरा पीछा किया था और दो दिन पहले एक दुर्घटना में उसका किराए का वॉल्क्सवैगन नष्ट हो गया था और फिर वह एक लड़की के चक्कर में पड़ गया था, जिसने बाद में उसकी मदद की थी। शायद शाम की दो या तीन बीयर से उसे ज्यादा कुछ मदद नहीं मिली थी।
उस समय मौसम बड़ा डरावना लग रहा था और मैं उसे ही निहार रहा था, ईव जैक्सन बाईस लीटरवाले एक टैंक के साथ वहाँ पहुँच गई। मेरा पहलेवाला टैंक दो दिन पहले फोरिया में एक जगह से फट गया था। माइक थका हुआ तो जरूर था, लेकिन उसके उत्साह में कोई कमी नहीं आई थी। उसने ईव से टैंक लिया और उसे फटे हुए टैंक के स्थान पर लगा दिया, जिसे लेकर मैंने अब तक की उड़ान भरी थी।
अब तक दोपहर का समय बीत चुका था। नियत कार्यक्रम के अनुसार इस समय मुझे क्रीट द्वीप पर होना चाहिए था-यहाँ से लगभग तीन सौ मील दूर। मैंने भूमध्य सागर के दूसरी ओर पहुँचने के लिए अपनी आगे की यात्रा शुरू करने से पहले एक दिन क्रीट द्वीप की राजधानी इराक्लियोन में ठहरने का मन बना लिया था।
उसी समय वह छोटा विमान, जिसे रियाज ने इंग्लैंड से भेजा था, बड़ी मात्रा में ईंधन और दो पायलटों के साथ मेरे पास पहुँच गया। यह मेरे लिए सुरक्षा विमान के रूप में था, जिसमें माइक को अपने उपकरणों और एक छोटी डोंगी के साथ समुद्र के रास्ते सैकड़ों मील दूर मिस्र में अलेक्जेंड्रिया तक जाना था। माइक ने विमान की पिछली सीट पर नजर डाली तो एकदम बिफरकर बोल उठा, ‘इसमें मेरे लिए जगह नहीं है, मेरे औजारों और अन्य सामान की तो बात ही अलग है।’
मैंने दोनों पायलटों की यहाँ तक की उड़ान का और वापस इंग्लैंड जाने तक का खर्च उन्हें दिया और उनका धन्यवाद करते हुए वहाँ से वापस भेज दिया।
माइक ने मेरे शैडो विमान को एक बार अच्छी तरह से देखा और बताया कि वह किसी अतिरिक्त अथवा सहायक विमान के बिना भी उड़ान के लिए पूरी तरह उपयुक्त है। मैं भी स्वयं को तैयार होने के लिए आश्वस्त करने लगा।
‘लो, यह उड़ान के लिए तैयार है।’ माइक ने अपने गंदे हाथ अपनी कमीज से पोंछते हुए कहा।
तभी ईव ने एकदम चौंकते हुए कहा, ‘‘इतना दिन ढले आप कहाँ जाने की सोच रहे हैं ? दिन ढलने से पहले आप इराक्लियोन नहीं पहुँच सकते।’’
क्रीट पहुँचने में पाँच घंटे से कम नहीं लगने थे और शाम ढलने के बाद वहाँ पहुँचना खतरे से खाली नहीं था। यदि रास्ते में कोई मुश्किल आती तो एक सौ मील की दूरी से कैसे कोई बचाव-दल मेरे पास तक पहुँच पाता ! मैंने सोचा-अपने साहसिक अभियान को देखते हुए जाना ठीक नहीं है; किन्तु इस तरह अगले दिन की सुबह का इंतजार करते हुए कोरफू के इर्द-गिर्द मँडराते रहना भी बेकार बैठकर समय नष्ट करना ही था।
पूरी उड़ान के दौरान मैंने एक बात अनुभव की, जो इस समय और भी ज्यादा अनुभव होने लगी थी; मेरे निर्णय लेने में सिर्फ सुरक्षा ही काम नहीं कर रही थी, बल्कि उसके साथ-साथ लोगों की हँसी का पात्र बनने का डर भी काम कर रहा था। इससे पहले मुझे अपने लंदन प्रस्थान से कुछ महीने तक लोगों की आलोचना सुननी पड़ी थी कि इतनी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनी के प्रमुख को-जिसके ऊपर दसियों हजार लोगों की रोजी-रोटी निर्भर है-इस प्रकार के साहसिक कार्य में नहीं लगना चाहिए। मेरे परिवार के सभी लोग, मित्र और सहकर्मी कोई भी इसके पक्ष में नहीं था कि मैं कीर्तिमान के चक्कर में पड़कर अपने जीवन को जोखिम में डालूँ। अब अगर मैं कामयाब नहीं होता तो मुझे लोगों की हँसी और अपमान का सामना करना पड़ता। ऐसे में मुझे खराब मौसम और खतरनाक स्थितियों के कारण उत्पन्न भय का सामना करने और असफलता की स्थिति में लोगों की हँसी से बचने की नैतिक शक्ति भी जुटानी थी। मुझे नहीं लगता कि इंग्लैंड की एक अलग संस्कृति में रहनेवाले ब्रायन और ईव जैक्सन को इस तरह की ऊहापोह की स्थिति से गुजरना पड़ा होगा।
मैं क्रीट से पहले किसी अड्डे का पता लगाने के लिए ईव और जैक्सन के साथ चार्ट को ध्यान से देखने लगा, ताकि समुद्र में गिरने के खतरे से बचते हुए उड़ान को जारी रखा जा सके। चार्ट पर हमने इराक्लियोन के उत्तर में लगभग सौ मील की दूरी पर एक छोटा सा द्वीप मिलोस देखा, जो कोरफू से साढ़े चार घंटे की उड़ान पर था; किंतु यह सोचकर मुझे निराशा होने लगी कि साढ़े चार घंटे की इस उड़ान का भी अच्छा-खासा हिस्सा समुद्र के ऊपर से ही तय करना है। इस मुश्किल भरी स्थिति पर सोच-विचार करते हुए हम अपने विमान के पंखों के नीचे बैठ गए। मुझे अब भी एक सहायक विमान की जरूरत महसूस हो रही थी, क्योंकि सहायक विमान के बिना मुझे अपने जीवन के लिए भारी खतरा दिखाई दे रहा था।





प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book